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दर्शनशास्त्र का स्वरूप, , धर्म , एवं संस्कृति से उसका संबंध

 दर्शन का परिचय मनुष्य के मन में विश्व की विभिन्न वस्तुओं को देखकर उसे जानने की प्रबल इच्छा उत्पन्न होती है जिसके कारण जिज्ञासा के फल स्वरुप विभिन्न प्रश्न मनुष्य के मन में जागृत होते हैं।

जैसे

ईश्वर क्या है?

जीवन क्या है?

जिंदगी में क्या करना चाहिए?

दर्शन के अर्थ को दो मुख्य आधार पर समझा जा सकता है जो निम्नलिखित हैं

पाश्चात्य दर्शन

भारतीय दर्शन

दर्शन का पाश्चात्य एवं भारतीय अर्थ। दर्शन हिंदी और अंग्रेजी के दोनों शब्द को दर्शन और फिलोसोफी प्रायः एक समझ लिया जाता है किंतु इनमें भेद है इसलिए दर्शन का पाश्चात्य और भारतीय दोनों अलग-अलग अर्थ जानना आवश्यक है पाश्चात्य अर्थ

जीवन और जगत को उसकी समग्रता में समझने का निष्पक्ष बौद्धिक सर्वांगीण, समीक्षात्मक एवं मूल्य आत्मक प्रयास ही दर्शन कहलाता है। अंग्रेजी का philosophy शब्द दो ग्रीक शब्दों philos और Sophia से बना है।

Philos का अर्थ है  प्रेम या अनुराग। सोफिया का अर्थ है ज्ञान या विद्या।

इस प्रकार फिलोसोफी का शाब्दिक अर्थ है ज्ञान के प्रति प्रेम यहां ज्ञान का आशय सत्य की अनुभूति से है।

पश्चात्य दर्शन का प्रारंभ जिज्ञासा से होता है। यह जिज्ञासा जीवन और जगत से संबंधित कुछ मूलभूत प्रश्न से संबंधित होता है, जैसे जीवन और जगत का मूल तत्व एक स्वरूप क्या है जीवन का लक्ष्य क्या है आदि।

भारतीय अर्थ -

भारतीय दार्शनिक परंपरा में फिलोसोफी को दर्शन कहा जाता है। 

 दर्शन शब्द संस्कृत भाषा के 'दृश्' धातु से बना है जिसका अर्थ होता है देखना ,अर्थात साक्षात ज्ञान प्राप्त करना इसलिए दर्शन का तात्पर्य है जिसके द्वारा देखा जाए अथवा साक्षात्कार किया जाए इस साक्षात ज्ञान को ही भारतीय परंपरा में तत्वज्ञान कहा जाता है। 

  साधारणतः देखने का आशय चक्षु  इंद्रिय द्वारा देखने या पांच ज्ञानेंद्रियां से प्राप्त ज्ञान से लिया जाता है किंतु यहां देखना चर्च इंद्रिय के अतिरिक्त में नेत्रों से से भी हो सकता है सुख में नेत्र जिसे दिव्य चक्षु ज्ञान चक्षु या अंतरात्मा भी कहा गया है। स्थूल नेत्रों से जहां भौतिक पदार्थों का ज्ञान प्राप्त होता है वही सोच में नेत्रों से सूक्ष्म आध्यात्मिक ज्ञान की प्राप्ति होती है इस प्रकार भारतीय दर्शन का प्रयोग स्थूल एवं सूक्ष्म भौतिक एवं आध्यात्मिक दोनों अर्थों ं में किया गया है। भारतीय मत के अनुसार लगभग सभी भारतीय दार्शनिक और दार्शनिक संप्रदाय परम तत्व के साक्षात्कार कोई दर्शन मानते हैं।

दर्शन की परिभाषाएं

  • काम्ट के अनुसार - दर्शन विज्ञानों का विज्ञान है
  • राधा कृष्ण के अनुसार  - दर्शन वास्तविकता के स्वरूप की तर्कसंगत खोज है
  • कांट के अनुसार -  दर्शन ज्ञान का विज्ञान तथा आलोचना है
  • स्पेंसर के अनुसार  - दर्शन का संबंध प्रत्येक वस्तु से है और इस रूप में यह एक सार्वभौमिक विज्ञान है
  • हीगल के अनुसार -  दर्शन सत्ता तत्व दर्शन है।

दर्शन का

  • दर्शन का उद्देश्य तर्क द्वारा संशय को दूर करना!  
  • दर्शन के द्वारा तात्विक रहस्य का चिंतन किया जाता है
  • दर्शन का उद्देश्य जीवन के आदर्शों का निर्माण करना है
  • दर्शन का उद्देश्य सत्य के साक्षात्कार से है
  • इसकी सहायता से ज्ञान के यथार्थ स्वरूप की प्राप्ति की जाती है
  • दर्शन मूलभूत प्रश्नों को जानने का प्रयास करता है।
  • दर्शन की उत्पत्ति का कारण
  • दर्शन की उत्पत्ति का सर्व प्रमुख कारण है मनुष्य में व्याप्त आध्यात्मिक तथा बौद्धिक असंतोष
  • मनुष्य के मन में उत्पन्न वैश्विक स्तर पर आश्चार्य की भावना मनुष्य के मन में
  • मनुष्य विश्व को उसकी समग्रता में जानने का प्रयत्न करता है।
  • मानव मस्तिष्क में उत्पन्न संधि की भावना इत्यादि।
  • मनुष्य की जिज्ञासा ने भी दर्शन के उत्पत्ति का को आधार दिया।

दर्शन और जीवन

दर्शन मनुष्य को एक सार्थक मानव जीवन व्यतीत करने तथा जीवन एवं जागृत के सच्चे स्वरूप को जानकर उन्हें उनके प्रति अपना एक दृष्टिकोण बनाने में मदद करता है स्पष्ट है कि जीवन से दर्शन का सीधा एवं अनिवार्य संबंध है

मानव जीवन में दर्शन की आवश्यकता

  • राधाकृष्णन के अनुसार दर्शन का मुख्य लक्ष्य निर्माण एवं सृजनात्मक है। दर्शन मानव जाति को असत्य से सत्य की ओर अंधकार से प्रकाश की ओर अज्ञान से ज्ञान की ओर असंतोष से संतोष की ओर ले जाता है। किस रूप में या जीवन के लिए उपयोगी है।
  • प्रत्येक व्यक्ति का एक जीवन दर्शन होता है जिसके आधार पर वह जीवन जीता है। जिसके कारण उसके जीवन दर्शन में स्पष्टता वैचारिक संगति वास्तविकता एवं मूल्य आत्मकथा पक्ष अधिक होता है उसका जीवन व्यतीत एवं खुशहाल होता है।
  • दर्शन का हमारे सामाजिक आर्थिक राजनीतिक जीवन पर प्रभाव पड़ता है। विभिन्न राजनीतिक शासन पद्धतियां विविध दर्शनिक दृष्टिकोण का परिणाम है।

उदाहरण स्वरूप

  1. जनतंत्र वाद का मूल मानव मात्र में समानता का दार्शनिक दृष्टिकोण है।
  2. राजतंत्र वाद का मूल राजा को ईश्वर का प्रतिनिधि मानना है।

इस प्रकार व्यक्ति और राज्य के संबंध व्यक्ति व्यक्ति के मध्य संबंध कैसा होना चाहिए इसके शिक्षा भी दर्शन प्रदान करता है

शारीरिक स्वास्थ्य एवं मानसिक स्थिति में योग दर्शन की भूमिका निर्विवाद है।

दर्शन सांस्कृतिक जीवन के सभी पहलुओं जैसे नृत्य संगीत कला साहित्य आदि को प्रभावित करता है उदाहरण स्वरूप भारतीय मूल रूप से आध्यात्मिक है परिणाम स्वरूप नृत्य कला और साहित्य में आध्यात्मिकता के प्रति रुझान दिखाई देता है। दर्शन हमारी चिंतन शक्ति को विकसित करता है तथा घनत्व विषयों पर भी संगत एवं तार्किक रूप से विचार विमर्श करने की शक्ति प्रदान करता है।

दर्शन हमें मानवीय मूल्यों के प्रति सचेत कर हमें सच्चा मानव बनाने की चेष्टा करता है।

दार्शनिक चिंतन माननीय व्यक्तित्व के पथ प्रदर्शक का काम करता है।

स्पष्ट है कि दर्शन के बिना अर्थ पूर्ण गरिमापूर्ण  आनंदपूर्ण मानव जीवन संभव नहीं है दर्शन के अभाव में मानव जीवन पशु तुल्य हो जाएगा।


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