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अणु शक्ति का प्रयोग सृजनात्मक कार्यों में किस प्रकार किया जा सकता है।

 आज के इस आर्टिकल में हम अणु शक्ति के बारे में कुछ चर्चा करेंगे क्योंकि अणु शक्ति का सकारात्मक रूप किस प्रकार से हम ले सकते हैं। नीचे आर्टिकल में पढ़ें।


अणु शक्ति का महत्व - परमाणु या अणु शक्ति का एक पक्ष मानवता के लिए विनाशकारी है तो दूसरा पक्ष उसका सृजनकारी रूप है।

मानव कल्याण में परमाणु शक्ति का सृजनात्मक तथा विकास हेतु उपयोग हो सकता है। आज अनेक राष्ट्र जैसे अमेरिका, रूस जापान ,जर्मनी आदि परमाणु शक्ति का विकास करके अनेक महत्वपूर्ण कल्याणकारी कार्यों में उसका उपयोग कर रहे हैं।


इसका प्रयोग निम्नलिखित क्षेत्रों में किया जा सकता है-

1. अणुचालित बिजली घरों में अति सस्ती दर पर विद्युत उत्पादन हो रहा है ।इससे कोयला पेट्रोल गैस आदि प्राकृतिक ऊर्जा के रूप में परमाणु के प्रयोग में भविष्य की ईंधन की चिंता को बहुत कम कर दिया है।

2. परिवहन एवं दूरसंचार के माध्यमों में भी अणु शक्ति का प्रयोग एक नई क्रांति को जन्म दे रहा है।


3. चिकित्सा के क्षेत्र में भी अणु शक्ति मनुष्य के लिए वरदान बन गई है कैंसर जैसे भाग भयंकर तथा असाध्य रोगों पर अब रेडियो कोबाल्ट की सहायता से काफी कुछ सफलता प्राप्त कर ली गई है।


4. परमाणु ऊर्जा तथा कथित परमाणु भट्टी में मुक्ति की जाती है। इन भट्ठियों में परमाणु नाभिकों का विखंडन करते हैं। इससे ऊर्जा मुक्त होती है, तो उसका के रूप में विभिन्न कार्यों में प्रयुक्त की जाती है।


5. परमाणु ऊर्जा का एक और सृजनकारी उपयोग रेडियोधर्मी पदार्थ से प्राप्त विकिरणों से संबंध रखता है। रेडियोधर्मी पदार्थ जिन्हें समानता रेडियोधर्मी समस्थानिक कहते हैं, परमाणु इंजीनियरिंग के "ऊर्जा से संबंधित" क्षेत्र के होते हैं।

इनका उपयोग अब विभिन्न कार्यों में होने लगा है। जैसे उद्योग, खेती ,चिकित्सा आदि में।


6. रेडियो तत्व का एक और भी विशेष प्रयोग हो सकता है। इसके द्वारा वैज्ञानिकों को द्रव्य के अदृश्य कानों की गति का पता चलता है। उनकी सहायता से भी प्रत्येक परमाणु का मार्ग जान सकते हैं तथा एक ही रासायनिक तत्व के विशिष्ट परमाणुओं को इस तत्व के दूसरे परमाणुओं से अलग पहचान कर सकते हैं।

परमाणु शक्ति को मानव जाति के लिए खतरा क्यों माना गया है?


परमाणु परीक्षण सदैव ही मानव जाति के लिए अहित कर रहा है। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान करोड़ों लोगों की मौत बमों के प्रयोग के कारण हुई थी। जापान के हिरोशिमा ,नागासाकी नगर आज भी वीरान है। हाइड्रोजन बम के प्रयोग से मानव जाति के अस्तित्व पर प्रश्न चिन्ह लगा सकता है। आज ऐसे ऐसे बमों का निर्माण कर लिया गया है। जिससे पूरी दुनिया को कई बार नष्ट किया जा सकता है। दूसरे हथियारों में बम वर्षा को पनडुब्बियों और प्रक्षेप पत्रों का विकास हो चुका है। इन सब निर्माण के पीछे अपार संपत्ति ब्यय की जा रही है।

यदि इन संसाधनों का प्रयोग शांति में कार्यों के लिए किया जाए तो पूरी दुनिया से अभाव और गरीबी से ग्रस्त करोड़ों लोगों के जीवन को सुख में बनाने के लिए बहुत कुछ किया जा सकता है। इस प्रकार स्पष्ट है कि परमाणु शक्ति मानव जाति के लिए खतरा है।

सुमित्रानंदन पंत के अनुसार उनकी रचना भारत माता में प्रवासिनी किसको कहा गया है?

 आज की इस आर्टिकल में एक प्रकृति प्रेमी सुमित्रानंदन पंत के अनुसार 'भारत माता' में उन्होंने प्रवासिनी किसको कहा है उसके बारे में इस आर्टिकल में लिखा गया है जो नीचे दिए गए हैं।


प्रकृति के सुकुमार कवि सुमित्रानंदन पंत ने 'भारत माता' शीर्षक कविता में भारत माता के लिए ही प्रवासिनी शब्द का प्रयोग किया है। परतंत्र भारत माता अत्यंत दुखी है। इसकी पैरों में भेड़िया जकड़ी हुई है। 


उसकी संताने गुलामी जीवन जीने को विवश हैं। प्रगति और विकास के मार्ग से दूर भारत माता अपने ही घर में उदासीन अत्यंत दुखी हैं। अपने घर में रहने का कुछ भी सुख उसे नहीं मिल रहा है। वह पराए घर की निवासिनी की तरह विवश जीवन जीने को बाध्य है। यही कारण है कि कवि ने उसके लिए प्रवासिनी शब्द का प्रयोग किया है


भारत माता का सारांश अथवा आशय है कि ' भारत माता कविता में कवि सुमित्रानंदन पंत ने तत्कालीन परिस्थितियों में संघर्षरत भारतीय जीवन का मार्मिक चित्रण प्रस्तुत किया है। कवि कहते हैं कि खेतों में दूर तक फैली हुई हरियाली भारत माता का धूल भरा मैला सा आंचल है।

गंगा जमुना का बहता पानी, मिट्टी की प्रतिमा सी दुखी भारत माता अश्रु जल है। जो लगातार बह रही है भारत माता दीनता से पीड़ित अपलक आंखें झुकाए हुए, होठों पर शांत भाव से क्रंदन करते युगों की पराधीनता रूपी अंधकार से किन मां होकर मानव अपने ही घर में प्रवासिनी हो गई है।


कविता कालीन स्थिति को जिक्र करते हुए कहते हैं, कि भारत माता की 30 करोड़ संतान के पास तन ढकने को कपड़े तक नहीं है। वह भूखी प्यासी शोषण और असहाय जीवन जीने को विवश है। भारत को मुद्दत सभ्यता अशिक्षा और निर्धनता ने घेर रखा है। इससे मानव भारत माता मस्तक झुकाए वृक्ष के नीचे निवास कर रही है। 

धन धनिया से परिपूर्ण भारत माता धरती के समान सहनशील बनकर आज कुंठित सी है। उसके कांपते हुए अंधेरों की मौन हंसी राहुग्रसित चंद्रमा के समान दिखाई दे रही है।

कवि कहते हैं कि अंधकार से आप शादी क्षितिज में भारत माता की भुकुरट्टी चिंतित है। उसने अपने स्तनों से अमृत अतुल्य अहिंसा रूपी दूध का पैन कर कर भारतीय मनुष्य को पालन पोषण किया है।

इससे भारतीयों के मन से भय व अंधकार दूर हो गया।

इस प्रकार कविवर पंत ने अत्यंत भावपूर्ण शैली में सहज, सरल तथा प्रभावपूर्ण भाषा का प्रयोग करते हुए भारत माता के वास्तविक चित्रों को इस प्रकार कविता में अंकित किया है।


संघर्षों की सीप में ही सफलता का मोती पलता है

संघर्षों की सीप में ही सफलता का मोती पलता है -

 संघर्ष से व्यक्ति में निखार आता है। संघर्ष से प्राप्त लक्ष्य का मूल हर कोई नहीं समझ सकता। स्वाति नक्षत्र की एक बूंद शिप में बंद होकर ही मोती का रूप धारण कर पाती है। हमें जीवन में अनेक दृष्टांत ऐसे मिल जाएंगे की जिसने जीवन संघर्ष में अपने को झोंक दिया, सफलता ने निश्चित रूप से उसका कदम चूमा है।

जिसने संघर्ष से पलायन किया उसे कोई लक्ष्य या मुकाम हासिल नहीं हो सका। प्रत्यक्ष उदाहरण है - सोना आग में तपकर ही निखरता है।

जीवन में निखार के लिए भी संघर्ष आवश्यक है।



महत्वाकांक्षा का मोती निष्ठुरता की सीपी में रहता है-


सिपी के कठोर कवच के अंदर सुंदर मोती रहता है। निष्ठुर एवं क्रूर बनने पर ही ज्यादातर महत्वाकांक्षाएं पूरी होती है। सहृदयता एवं उदारता के साथ महत्वाकांक्षाओं को पूरा करना संभव है।

व्यक्ति जब कठोरता और क्रूरता से प्रेरित रहता है, तब उसके पीछे उसकी महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति का लक्ष्य होता है। महत्वाकांक्षाएं अत्यंत मोहन एवं आकर्षक होती है।

मनुष्य उसका मोह नहीं छोड़ पता। मोती की सुंदरता के आकर्षण में मनुष्य बंधें बिना नहीं रह पाता। अतः महत्त्वाकांक्षा  मोती की तुलना समिचीन है


क्षमा वीरों का आभूषण है-


वह व्यक्ति समाज में श्रेष्ठ और वीर माना जाता है जो दूसरों की गलती को नजर अंदाज करते हुए उसे क्षमा प्रदान करता है। भगवान श्री कृष्ण ने शिशुपाल की गलतियों पर ध्यान न देते हुए उसे कहा था कि मैं तुम्हारी 100 गलतियों पर क्षमा करता रहूंगा और उन्होंने अपनी प्रतिज्ञा निभाया भी।


विपत्तियां मनुष्य की सर्वश्रेष्ठ गुरु है


मनुष्य संभावित सुख पूर्ण स्थितियों की ओर आकर्षित होता है।

किंतु मनुष्य के व्यक्तित्व का पूर्ण विकास विपत्तियों में ही होता है विपत्तियां मनुष्य को कर्मशील एवं कर्तव्य परायण बनती हैं। विपत्तियों से गिरा आदमी जीवन की दुरुह से  दुरुह स्थितियों का सामना करने के लिए तैयार रहता है। जिसने जीवन में दुख नहीं देखा उसे जीवन के सच्चे स्वाद से वंचित मानिए। हमारे महापुरुषों का जीवन चरित्र इस बात का प्रत्यक्ष उदाहरण है। उन्होंने दर्द में विपत्तियों का सामना करके अंत में उन पर विजय प्राप्त की। विपत्तियों का सामना करके मनुष्य सहनशील हो जाता है। विपत्ति रूठी भट्टी में तपकर ही मनुष्य में सोने जैसा निखार आता है।