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सुखवाद क्या है चार्वाक दर्शन के दो पक्ष निम्नलिखित कौन - कौन से हैं

 चार्वाक दर्शन में विषय को परम पुरुषार्थ माना गया है कामिनी के आगमन से होने वाला सुख नि:श्रेयस है।न नरक, मृत्यु के बाद अस्तित्व रखने वाला और अन्य शरीर धारण करने वाला कोई नित्य आत्मा नहीं है।

इसके संदर्भ में महत्वपूर्ण श्लोक -

1."यआवज्जईवएत् सुख न जीवेत"

अर्थ - जब तक जीवन है तब तक सुख खूब खाओ - पियो ।

2. " ऋणं कृत्वा घृतं पइबएत्"

अर्थ - सुख भोग करो चाहे ऋण ही क्यों ना लेना पड़े।

3." भस्मीभूतस्य देहस्य  पउनरआगमनं कुछ:"

अर्थ - शरीर के भस्म होने के बाद आत्मा कहां से आएगा इसलिए जीवन में जितना सुख ले सको उतना लो।द

चार्वाक दर्शन के दो पक्ष निम्नलिखित हैं -

1. स्वीकारात्मक पक्ष

2. अस्वीकारात्मक पक्ष

1. स्वीकारात्मक पक्ष

A. काम को सर्वोच्च सुख मानता है और अर्थ को उसका माध्यम।

B. काम ( सांसारिक सुख )अर्थ (घर संसार की प्राप्ति) इह लौकिक है निकृष्ट है स्वार्थ वादी सुखवादी दर्शन है।

2.अस्वीकारात्मक पक्ष

A. धर्म और मोक्ष को अस्वीकार।

B. पूर्ण जन्म और पूर्व जन्म का खंडन।

(नोट: -कालांतर मैं कुछ सुशिक्षित अर्थ वी काम के साथ धर्म को भी स्वीकार किया)

सुखवाद से संबंधित अन्य जानकारियां

# चार्वाक दर्शन  नीतीश शास्त्रीय विचार उनके ज्ञान मीमांसा व तत्व मीमांसा तत्वों की तार्किक परिणति है।


# नीतीश शास्त्रीय दृष्टिकोण से चार्वाक इहलौकिक ने कृष्ण स्वार्थ वादी सुख का समर्थन करते हैं।


# इसका आशय है कि वह जिस जीवन में अपनी शारीरिक सुख को जीवन का चरम लक्ष्य मानते हैं जो कर्म इस लक्ष्य प्राप्ति में सहायक  है वह उचित है और जो इसमें बाधक है वह अनुचित है।


# चार्वाक भारतीय सांस्कृतिक परंपरा में स्वीकार्य चार पुरुषार्थों( धर्म ,अर्थ ,काम, मोक्ष )में से केवल अर्थ और काम को ही स्वीकार करते हैं उनके अनुसार काम शारीरिक सुख जीवन का चरम सुख है और अर्थ ( धन )इसकी प्राप्ति का साधन है।


# सुखवाद के संदर्भ में चार्वाक के दो संप्रदाय दिखाई देती है

ध्रुत चार्वाक

धार्मिक या शिक्षित चार्वाक।

ध्रुत चार्वाक व्यक्तिगत इंद्रिय सुख को ही मानते हैं जबकि शिक्षित चार्वाक  इंद्रियों सुख के साथ मूल्य की भी बात करते हैं।

आलोचना - 

 1.चार्वाक के नीति विचारों में जीवन की उच्च आदर्शो व मूल्यों को महत्व एवं स्थान नहीं दिया गया है यदि प्रत्येक व्यक्ति अपने ही सुख प्राप्ति का प्रयास करें तो सामाजिक व्यवस्था खतरे में पढ़ सकती है।

2. चार्वाक मत भौतिकवाद को बढ़ावा देता है इससे उपभोक्तावादी प्रवृत्ति को बढ़ावा मिलता है यह उपयोगितावाद (वस्तुओं का उपयोग आवश्यकता तक करना फिर उसे छोड़ देना) को बढ़ावा देता है।

3. पर्यावरणीय दृष्टिकोण से भी इसे अनुकूल नहीं माना जा सकता।

4. ध्रुत चार्वाक सुख में गुणात्मक भेद नहीं मानते वे शारीरिक सुखों को ही प्रधान मानता है।


शंकराचार्य द्वारा चार्वाक सिद्धांतों का खंडन -

शंकराचार्य ने चार्वाक सिद्धांतों को विभिन्न बिंदुओं के आधार पर उसका खंडन किया है यह बिंदु निम्नलिखित हैं -


1. कभी-कभी शरीर की सट्टा रहने पर भी चैतन्य की सट्टा नहीं रहती। सुषुप्ति और मूर्च्छा की अवस्थाओं में चैतन्य नहीं रहता इसलिए चैतन्य को शरीर से भिन्न किसी द्रव्य अर्थात आत्मा का गुण मानना पड़ेगा।

2. रूप शरीर का गुण है क्योंकि यह शरीर में सब को ही दिखाई पड़ता है लेकिन चैतन्य केवल व्यक्ति को ही दिखाई पड़ता है इसलिए यह उसका व्यक्तिगत गुण है यदि चैतन्य शरीर का गुण होता तो उसे सभी देख सकते अतः चैतन्य शरीर का नहीं बल्कि शरीर से भिन्न आत्म का गुण है।

3. यह निश्चय के साथ नहीं कहा जा सकता कि चैतन्य भौतिक देह की स्थिति कल तक ही बना रहता है संभव है कि  देह‌ के नाश के बाद भी किसी रूप में उसका अस्तित्व बना रहे।

इस संशय मात्र से चार्वाक का यह सिद्धांत प्रसिद्ध हो जाता है कि चैतन्य देह का गुण है।

चैतन्य आत्मा के गुण के रूप में भी कायम रह सकता है जो कि शरीर की मृत्यु के बाद भी रहता है और दूसरे शरीर में जन्म लेता है इस परिकल्पना को अनुचित नहीं माना जा सकता।

4. चैतन्य का स्वरूप क्या है?

चार्वाक मत के अनुसार चैतन्य जड़ भूतों के संघात का विकार है तो, क्या चैतन्य उनसे बिन पदार्थ है? या भूतों का गुण है? अब भौतिक पदार्थ की सत्ता तो चार्वाक मानते नहीं इसलिए चैतन्य अभौतिक पदार्थ नहीं हो सकता। भूतों के संघात का धर्म भी चैतन्य को नहीं माना जा सकता, क्योंकि भौतिक पदार्थ और उनके धर्म चैतन्य के विषय हैं अर्थात चैतन्य उनका ज्ञाता है अतः चैतन्य का अपने विषयों से अभेद नहीं हो सकता।


 जैसे - आंख स्वयं को जला नहीं सकती वैसे ही विषय स्वयं अपने को नहीं जान सकता इसलिए चैतन्य कदापि अपने ही विषयों का धर्म नहीं माना जा सकता। जिस प्रकार चार्वाक भौतिक वस्तुओं की प्रत्यक्ष के आधार पर सत्ता स्वीकार करते हैं। इस प्रकार प्रत्यक्ष के आधार पर चैतन्य नमक स्वतंत्र वस्तु की भी सत्ता माननी चाहिए क्योंकि चैतन्य ब्राह्मण वस्तुओं और मनोवृत्तियों का प्रत्यक्ष करता है।

5. प्रकाश के बिना वस्तुओं का चाक्षुष प्रत्यय नहीं हो सकता लेकिन इसका अर्थ यह नहीं की चाक्षुष प्रत्यक्ष प्रकाश का गुण है प्रकाश तो चाक्षुष प्रत्यक्ष का एक उपकरण मात्र है। इसी प्रकार शरीर भी वस्तुओं का ज्ञान करने में चैतन्य का एक सहायक उपकरण हो सकता है अतः चैतन्य का शरीर का धर्म नहीं माना जा सकता और आत्मा चैतन्य विशिष्ट देह मात्रा नहीं है


चार्वाक दर्शन की प्रासंगिकता

1. चार्वाक ने कल्पना लोक से आम जनता का ध्यान हटाकर इस जग में सक्रिय होने की बात कही है।

2. लोक संदर्भ में प्रचलित जब तक सांस तब तक आज जान है तो जान है इत्यादि वाक्य भी एक संदर्भ में चार्वाक के मत का समर्थन करते हैं।

3.चार्वाक दर्शन भाग्यवादी और कल्पना वादी होने से बचाता है।


मॉडल प्रश्न जो परीक्षाओं में अक्सर पूछी जाती हैं


1.  चार्वाक के भौतिकवादी सुखवाद का क्या महत्व है?

2. चार्वाक कितने प्रकार के प्रत्यक्ष प्रमाणों को स्वीकार करते हैं?

3. चार्वाक की तत्व मीमांसा प्रासंगिक है क्यों?

4.चार्वाक के सुखवादी सिद्धांत की विवेचना करें?

5. चार्वाक कृत अनुमान के खंडण का कथन एवं परीक्षण करें।

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1. दर्शनशास्त्र की आवश्यकता



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