आज की इस आर्टिकल में एक प्रकृति प्रेमी सुमित्रानंदन पंत के अनुसार 'भारत माता' में उन्होंने प्रवासिनी किसको कहा है उसके बारे में इस आर्टिकल में लिखा गया है जो नीचे दिए गए हैं।
प्रकृति के सुकुमार कवि सुमित्रानंदन पंत ने 'भारत माता' शीर्षक कविता में भारत माता के लिए ही प्रवासिनी शब्द का प्रयोग किया है। परतंत्र भारत माता अत्यंत दुखी है। इसकी पैरों में भेड़िया जकड़ी हुई है।
उसकी संताने गुलामी जीवन जीने को विवश हैं। प्रगति और विकास के मार्ग से दूर भारत माता अपने ही घर में उदासीन अत्यंत दुखी हैं। अपने घर में रहने का कुछ भी सुख उसे नहीं मिल रहा है। वह पराए घर की निवासिनी की तरह विवश जीवन जीने को बाध्य है। यही कारण है कि कवि ने उसके लिए प्रवासिनी शब्द का प्रयोग किया है
भारत माता का सारांश अथवा आशय है कि ' भारत माता कविता में कवि सुमित्रानंदन पंत ने तत्कालीन परिस्थितियों में संघर्षरत भारतीय जीवन का मार्मिक चित्रण प्रस्तुत किया है। कवि कहते हैं कि खेतों में दूर तक फैली हुई हरियाली भारत माता का धूल भरा मैला सा आंचल है।
गंगा जमुना का बहता पानी, मिट्टी की प्रतिमा सी दुखी भारत माता अश्रु जल है। जो लगातार बह रही है भारत माता दीनता से पीड़ित अपलक आंखें झुकाए हुए, होठों पर शांत भाव से क्रंदन करते युगों की पराधीनता रूपी अंधकार से किन मां होकर मानव अपने ही घर में प्रवासिनी हो गई है।
कविता कालीन स्थिति को जिक्र करते हुए कहते हैं, कि भारत माता की 30 करोड़ संतान के पास तन ढकने को कपड़े तक नहीं है। वह भूखी प्यासी शोषण और असहाय जीवन जीने को विवश है। भारत को मुद्दत सभ्यता अशिक्षा और निर्धनता ने घेर रखा है। इससे मानव भारत माता मस्तक झुकाए वृक्ष के नीचे निवास कर रही है।
धन धनिया से परिपूर्ण भारत माता धरती के समान सहनशील बनकर आज कुंठित सी है। उसके कांपते हुए अंधेरों की मौन हंसी राहुग्रसित चंद्रमा के समान दिखाई दे रही है।
कवि कहते हैं कि अंधकार से आप शादी क्षितिज में भारत माता की भुकुरट्टी चिंतित है। उसने अपने स्तनों से अमृत अतुल्य अहिंसा रूपी दूध का पैन कर कर भारतीय मनुष्य को पालन पोषण किया है।
इससे भारतीयों के मन से भय व अंधकार दूर हो गया।
इस प्रकार कविवर पंत ने अत्यंत भावपूर्ण शैली में सहज, सरल तथा प्रभावपूर्ण भाषा का प्रयोग करते हुए भारत माता के वास्तविक चित्रों को इस प्रकार कविता में अंकित किया है।
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