नए समाज में यह इतिहास पुराना है की नई आंखों का स्वागत होता है और शीघ्र ही वे अधिकार रोड हो जाते हैं किंतु पुरातन समाज में वृद्धों का वही स्थान आज भी है। आज भी युवकों के अधिकार स्वीकार नहीं की जाती युवकों को अपनी कल्पनाओं को लागू करने का अवसर नहीं मिल पाता इससे युवक की शक्ति व्यर्थ हो जाती है। उनमें असंतोष व्याप्त हो जाता है। वह अपनी रचनात्मक एवं आलोचना तमक व टिप्पणी में गवा देते हैं इससे समाज में ही अराजकता फैलती है।
पुरानी परंपरा की रक्षा हेतु वृद्धों को रहना भी आवश्यक है किंतु यदि न युवकों को उत्तरदायित्व दिया ।जाए तो कई लाभ हैं जैसे वृद्धों के स्थान से हटने पर नव युवकों को स्थान मिलना चाहिए। किंतु उसके लिए 9 युवकों को पहले तैयार करना चाहिए ।नए समाज के निर्माण हेतु युवक काबिल है वह रूढ़िवादिता को हटाकर नए विचारों से समाज को दिशा प्रदान कर सकते हैं समाज में क्रांतिकारी परिवर्तन युवक हिला सकते हैं अतः युवकों के अधिकारों को स्वीकार करना आवश्यक है।
2.युवक मैं साहस, शौर्य, तेज और त्याग की भावना प्रबल होती है, वह अभी संसार के कीचड़ में नहीं फंसा है लेखक किसी युवा वर्ग की बात कर रहे हैं?
आचार्य जी कहते हैं वृद्ध प्राचीन पद्धति के समर्थक होते हैं जब तक समाज में आधारभूत मौलिक सिद्धांतों में परिवर्तन के लिए नहीं सोचा जाएगा तब तक समाज के आर्थिक ढांचे में क्रांतिकारी परिवर्तन नहीं हो पाएगा ने समाज का प्रारंभ युवकों से ही होता है उनके सहयोग के अभाव में नए समाज की न्यू नहीं रखी जा सकती।लेखक इसका कारण यह मानते हैं। की साहस शौर्य तेज और त्याग की भावना युवक में प्रबल होती है। वह अभी संसार के कीचड़ में नहीं फसा हैवह आत्म बलिदान के लिए तत्पर होता हैउसकी कोई सोच बंद ही नहीं है व नए विचारों को अपनाकर समाज की आवश्यकताओं की पूर्ति कर सकता है।युवक को समाज की सामयिक आवश्यकता का अनुभव हीी रहता है। तथा पुरानी परंपराओं व रूढ़िवादिताााा को तोड़ने में कठिनाई भी नहीं होती है।
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