कबीर की साखियां
संत कबीर
1. जीवन परिचय
संत कबीर का अभिवादन 1398 में काशी के समीप लहर तालाब में हुआ माना जाता है ।इनका लालन-पालन नीरू और नीमा नामक जुलाहा दंपति ने किया ।उन्होंने विधिवत शिक्षा दीक्षा प्राप्त नहीं की थी। फिर भी उनकी रचनाओं में जीवन के विविध अनुभव भरे हुए हैं। निरंतर सत्संग के द्वारा उन्होंने अपने ज्ञान को आगे बढ़ाया ।और धर्म के गुण रहस्य को जनसाधारण की भाषा में काव्य रूप में अत्यंत सरल और सहज अभिव्यक्ति प्रदान की ।स्वामी रामानंद के उदार विचारों का भी इन पर बहुत प्रभाव पड़ा उन्होंने अपनी रचना द्वारा मूलत उपदेशों की माध्यम से जगह-जगह घूम कर समाज में फैली रूढ़ियों पाखंड अंधविश्वासों पर तीखा प्रहार कर उन्हें हटाने का प्रयास किया ।जिस सांप्रदायिक एकता के प्रतीक आज हम सचेत हैं उसे संत कबीर ने अपनी कविता का मुख्य विषय बनाया सन 1518 में संत कबीर नगर में अंतर्ध्यान हुए।
2. रचनाएं- संत कबीर की प्रमाणित उपलब्ध कृतियां हैं
(1)बीजक (2)अनुराग सागर (3) साखी ग्रंथ (4) शब्दावली (5)कबीर ग्रंथावली
बीजक में साखी शब्द और रमणी तीन भाग हैं ।शब्दावली में लगभग 59 प्रकार के शब्द संग्रहित हैं जिनमें चौका के शब्द ,शब्द बसंत ,शब्द होरी ,शब्द मंगल शब्द प्रभाती, शब्द सोहर आदि अत्यधिक लोकप्रिय एवं प्रचलित हैं।
काव्यगत विशेषताएं
संत कबीर की काव्यगत विशेषताएं अधोलिखित है।
1. इनकी अधिकांश रचनाएं गेय हैं।
2. आप के काव्य में अनेक स्थानों पर रहस्य आत्मकथा के दर्शन होते हैं।
3. संत कबीर के काव्य में सुनिश्चित दार्शनिक विचारधारा मिलती है।
4. ब्रह्म के साथ एक का कार्य के लिए अहम का त्याग करने को संत कबीर ने आवश्यक माना है।
साहित्य में स्थान- भक्ति काल के अंतर्गत निर्गुण शाखा के प्रतिनिधि कवि संत कबीर ने लोक नंबरों पर तीखे प्रहार करके लोग आदर्शों की स्थापना की। उन्होंने जाति वर्ग और संप्रदाय से परे मनुष्य धर्म को अपने काव्य में प्रतिष्ठित किया ज्ञानमार्गी कवि में इनका स्थान सर्वोपरि है
कबीर की साखियां
1. भक्ति भजन हरि नाम है ,दूजा दुख अपार।
मनसा, वाचा ,करमना , कबीर सुमिरन सार।।
2. मेरा मुझमें कुछ नहीं जो कुछ है सब तोर।
तेरा तुझको सौंपते , क्या लागत है मोर।।
3. साधु भूखा भाव का, धन का भूखा नहिं।
धन का भूखा जो फिरे ,सो तो साधु नहिं।।
4. चाह गई चिंता मिटी, मनुआ बेपरवाह।
जिनको कछु ना चाहिए ,सोई साहंसाह।।
5. कबीरा गर्व न कीजिए ऊंचा देख आवास।
काल्ह परै भुइयां लेटना ,ऊपर जामी है घास।।
6. आवत गारी एक है उलट होत अनेक।
कह कबीर नहिं उलटीय , वही एक की एक।।
7. गोधन, गज धन, बाजी धन ,और रतन सब खान।
जब आवे संतोष धन, सब धन धूरि समान।।
8. साध का हवन कठिन है लंबा पेड़ खजूर ।
चढ़ै तो चखै है प्रेम रस ,गिरै तो चकनाचूर।।
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