मोहन का बचपन
बरसात का दिन था। आसमान में बादल रह रह कर घीर आते थे। एक बालक उन्हीं की तरफ एकटक देख रहा था
देखते-देखते एकदम चिल्ला उठा, मां ,मां देखो, सूरज निकल आया। अब तू प्रणाम कर ले मां ज्यों ही बाहर आई, सूरज भगवान बादल की ओट में छिप गए। कोई बात नहीं मनु ,भगवान की मर्जी नहीं है कि आज प्रणाम करूं ,भोजन करूं।
मनु की मां ने चौमासी में सूर्य दर्शन होने पर ही भोजन ग्रहण करने का व्रत लिया था आज सूर्य के दर्शन नहीं हुए तो उन्होंने भोजन नहीं किया। बरसात के दिनों में कई बार suraj के ना देखने पर उन्होंने भोजन नहीं किया। तब मनु को बहुत बुरा लगा। उसने मां से पूछा, मां तू ऐसे कठिन व्रत क्यों करती हो? " बेटा जब तू बड़ा हो जाएगा तब इसका अर्थ समझ जाएगा। अब चल मंदिर चलें , शिव के दर्शन करें। वहां पुजारी बहुत अच्छे भजन गाता है"मां तू शिवालय जाती है शिव के दर्शन करती है राम मंदिर जाती है कृष्ण हवेली जाती है कृष्ण के दर्शन करती है राम के दर्शन करती है बापू भी सब मंदिरों में जाते हैं लेकिन वह रामायण बड़े प्रेम से सुनते हैं। जब ब्राह्मण दोहे चौपाई गाता है तब मुझे बड़ा अच्छा लगता है। और सुन धाय कहती है किंतु राम नाम लिया कर तो तुझे भूत प्रेत का क्या, किसी का भी डर नहीं सताएगा। और बापू हरे राम हरे कृष्ण का कीर्तन बड़े प्रेम से सुनते हैं तो तू बता मां इन तीनों में कौन बड़ा है ?
बेटा ए तीनों ही बड़े हैं। तीनों ही एक है ं भगवान के ही नाम हैं देख ना मैं तुझे कभी मनु कहती हूं और कभी मोन्या कह देती हूं अरे जब तू बड़ा हो जाएगा तब सब कुछ समझने लगेगा। ऊपर बात करने वाले मां बेटे पुतलीबाई और मोहनदास थे मोहनदास जी बड़े होने पर मोहनदास करमचंद गांधी कहलाए और देशवासियों की सेवा करने के कारण महात्मा गांधी के नाम से संसार भर में प्रसिद्ध हुए। मोहन का जन्म अश्विन बदी 12 विक्रम संवत 1926 अर्थात 2 अक्टूबर 1869 ईस्वी को कठियावाड़ के छोटे से शहर पोरबंदर में हुआ था। इनके पिता करमचंद गांधी वैश्य थे। वैष्णव धर्म को मानने वाले तथा सत्य भाषी निडर एवं न्याय प्रिय थे अपनी पत्नी पुतलीबाई के समान ही धर्म के कार्यों में श्रद्धा रखते थे पढ़े लिखे तो कम थे, परंतु व्यवहार कुशल बहुत थे। घर बाहर के मामलों को बड़ी चतुराई से सुलझा देते थे। पोरबंदर अंग्रेजी राज्य की छत्रछाया में एक छोटी सी रियासत थी उसी के दीवाने थे राजकोट और बीकानेर रियासत में भी इन्होंने इसी पद पर कार्य किया था।
रियासतों में अंग्रेजी सरकार अपने प्रतिनिधि रखती थी। इन्हें पोलिटिकल एजेंट कहते थे। ये राजाओं एवं उनकी प्रजा की हलचल ऊपर निगरानी रखा करते थे। एक बार राजकोट के असिस्टेंट पोलिटिकल एजेंट ने वहां के राजा कि सान के खिलाफ कुछ अंड बंड बातें डाली। करमचंद गांधी को उस समय अंग्रेज की अशिष्टता सहन नहीं हुई। उन्होंने तुरंत उसका विरोध किया। गोरे साहब को एक काले दीवान का विरोध बिल्कुल अच्छा नहीं लगा। उसने उनसे क्षमा मांगने की जिद की। जब उन्होंने इंकार कर दिया तब उन्हें डराने धमकाने लगा।कुछ देर के लिए उसने उन्हें हवालात में भी बंद रखा। परंतु करमचंद मामूली आदमी नहीं थे, जो उस गोरे की धमकी से डर जाते । उन्होंने माफी मांगने से बार-बार इनकार किया।अंत में गोरे को झुकना पड़ा और उन्हें छोड़ दिया गया।
करमचंद को उनके सगे संबंधी और मित्र काबा गांधी भी कहते थे। स्पष्ट वादी होने के साथ-साथ वे बड़े क्रोधी और हट्टी भी थे। अपनी आज्ञा का उल्लंघन कभी बर्दाश्त नहीं करते थे।अपने निर्णय पर दृढ़ रहने की इच्छा मोहन को अपने पिता से ही मिली थी।
शिष्टाचार में भूल के कारण प्रायश्चित
एक बार घर में भोजन पर कई लोग निमंत्रित हुए। अतिथियों में मोहन ने अपने मित्र को भी निमंत्रण भेजा था, पर किसी कारण से वह भोजन में शामिल नहीं किया जा सका भोजन में मुख्य रूप से आम खिलाया जाने वाला था मित्र को वह आम नहीं खिला सका। इससे मोहन को बड़ा दुख हुआ इसलिए उसने मौसम भर आम नहीं खाए, यद्यपि आम उसका प्रिय फल था। शिष्टाचार के पालन में जो गलती हुई थी, उससे वह फिर ना हो, इस विचार से उसने यह संकल्प लिया था
स्कूल की पढ़ाई
मोहन का बचपन पोरबंदर में बीता । वही लुलिया मास्टर की प्राइमरी साला में उसकी पढ़ाई आरंभ हुई। वह शाला उनके घर के पास थी। मास्टर साहब लंगड़े थे। इसलिए उन्हें लोग लुलिया मास्टर करते थे। जब मोहन के पिता पोरबंदर से राजकोट रियासत के दीवान बनकर गए तब ,उनके साथ मोहन भी गया। उस समय उसकी आयु 7 वर्ष की थी 12 वर्ष की आयु तक उसने राजकोट में अपनी पढ़ाई की। इस बीच उसने अपने गुरुओं से एक बार भी झूठ नहीं बोला। लज्जालु स्वभाव होने के कारण व लड़कों से बहुत कम बात करता था। उसे डर लग रहा था कि कहीं कोई मेरी किसी बात पर खिल्ली ना उड़ाने लगे।
नकल के इशारे की उपेक्षा
हाई हाई स्कूल के पहले वर्ष की परीक्षा के समय की एक घटना है अंग्रेज इंस्पेक्टर परीक्षा लेने आया उसने मोहन की कक्षा के विद्यार्थियों को पांच अंग्रेजी शब्द लिखने को कहा उनमें एक शब्द कैटल था। मोहन ने इस शब्द के हिज्जे गलत लिखे थे पास ही खड़े शिक्षक ने इशारे से उसे चेताया, परंतु उसके दिमाग में यह बात नहीं आई की मास्टर साहब सामने लड़के की स्लेट देखकर हिज्जे ठीक करने को इशारा कर रहे हैं मोहन बच्चा ही था, फिर भी वह समझता था कि मास्टर इसलिए वहां है कि कोई लड़का दूसरे की नकल ना कर पाए मास्टर मोहन की इमानदारी देखकर बड़े प्रसन्न हुए । और अपने कार्य से मन ही मन लज्जित हुए
गांधी जी का संक्षिप्त परिचय देते हुए
गांधीजी के बचपन से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न
नियम भंग से दुखी
मोहन का सबसे बड़ा दुख तब होता था जब उससे कोई नियम भंग हो जाता था। स्कूल में हेडमास्टर ने सबके लिए खेल अनिवार्य कर रखा था मोहन की खेलों में रुचि नहीं थी। फिर भी वह खेल के समय उपस्थित रहता था। एक बार वह उपस्थित ना रह सका जिससे हेड मास्टर ने उसकी अच्छी पिटाई की। पिटाई से तो उसे दुख नहीं हुआ दुख इस बात से हुआ कि उसे ने पिटाई का काम किया स्कूल के नियम का पालन नहीं किया।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें