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योग की शक्ति

 योग की शक्ति बीएससी फाइनल ईयर की टॉपिक जिसके लेखक हरिवंश राय बच्चन जी हैं उन्होंने युग की शक्ति का वर्णन करते हुए इसके फायदों का भी उल्लेख किया है

डॉ हरिवंश राय बच्चन का सामान्य जीवन परिचय

आधुनिक हिंदी कवियों में डॉक्टर हरिवंश राय बच्चन का महत्वपूर्ण स्थान है। डॉ हरिवंश राय बच्चन का जन्म सन 1960 में इलाहाबाद के पास एक गांव में हुआ। पिता का नाम प्रताप नारायण श्रीवास्तव एवं माता सरस्वती देवी थी। डॉ हरिवंश राय श्रीवास्तव को बचपन में बच्चन नाम से पुकारा जाता था जिसका अर्थ बच्चा ही था। आगे चलकर उनके उपनाम के रूप में चलने लगा उनके दो पुत्र थे अमिताभ और अजिताभ।

बच्चन जी ने इलाहाबाद के विश्वविद्यालय में अंग्रेजी साहित्य में m.a. किया व 1952 तक इलाहाबाद विश्वविद्यालय में प्रवक्ता रहे। सन 1926 में इनकी विवाह श्यामा से हुई, जिनका टीवी की लंबी बीमारी के बाद 1936 में निधन हो गया। इस बीच में वे नितांत अकेले पड़ गए। 1941 में बच्चन ने तेजी सूरी से विवाह की। 1952 में पढ़ाई के लिए इंग्लैंड चले गए,जहां कैंब्रिज विश्वविद्यालय में अंग्रेजी साहित्य काव्य पर शोध किया। 1955 में कैंब्रिज से वापस आने के बाद भारत सरकार के विदेश मंत्रालय में हिंदी विशेष्य के रूप में उनकी नियुक्ति हो गई।

वे राज्यसभा के मनोनीत सदस्य भी रहे और 1976 में उनको पदम भूषण की उपाधि मिली इससे पहले उन्हें दो चट्टानें कविता संग्रह के लिए 1968 में साहित्य अकादमी का पुरस्कार भी मिला था। बच्चन जी की मृत्यु 18 जनवरी सन 2003 में मुंबई में हुए। बच्चन जी की प्रमुख कृतियों में मधुबाला, मधुशाला, मधु क्लास, निशा निमंत्रण, एकांत संगीत, सतरंगी नी, विफल विश्व, खादी के फूल, सूत की माला, मिलन दो चटाने, भारतीय अंगारे, इत्यादि चर्चित रचनाएं हैं।

 # योगियों की शक्ति का वर्णन 

डॉ हरिवंश राय बच्चन की डायरी योग की शक्ति के अनुसार जब योगी का चित्र इतना सब जाता है कि उसे किसी भी वस्तु पर स्थित करना सरल हो जाए, अर्थात धारण की अवस्था से, तब उसमें शक्ति का आना आरंभ हो जाता है और समाधि की अवस्था तक पहुंच कर अब वह अनंत चित्र से अपने को एक कर देता है। वह सर्वशक्तिमान हो जाता है।

मंकी सिद्ध से वह भूत, भविष्य, वर्तमान कुछ सामने फैले हुए नक्शे की तरह दिखता है, हवा में उड़ सकता है अदृश्य हो सकता है।अपने शरीर को छोड़कर दूसरे शरीर में प्रवेश कर सकता है। जो साधारण दृष्टि से अदृश्य हो उसे भी देख सकता है, आग और पानी पर चलना तो उसके लिए सामान्य बात है। अतः उसे आठों सिद्धियां प्राप्त हो जाती हैं। कोई ऐसा काम नहीं है जो वह चाहिए और ना कर सके। उसे अपने मन को स्थिर करने की देरी होती है।ऐसी शक्तियों को प्राप्त कर उनका प्रदर्शन करने वाला योगी पूर्ण समाधि के पहले ही रुक जाता है।इतना ही नहीं यदि वह से धन की कृति कमाने या उनका दुरुपयोग करने लगता है तो उसका पतन भी हो जाता है और उसकी शक्तियां समाप्त हो जाती हैं।सच्चाई होगी इन प्रलोभन ऊपर रुकता नहीं क्योंकि पूर्ण समाधि में आने का जो सुख और आनंद है उसकी तुलना में प्रदर्शनकारी शक्तियां कुछ भी नहीं है सच्ची योगी को जब ए शक्तियां प्राप्त होने लगती हैं तब वह बिना रुके उस अंतिम अवस्था को प्राप्त करने के लिए आतुर हो उठता है उनके लिए इससे आगे कोई सुख एवं आनंद नहीं है।।

हठयोग और राजयोग


भारतीय मनोवैज्ञानिक मंकी क्रियाओं को अनुशासित एवं चयनित करने की विधि खोजते हैं और मन को वश में करने के 2 उपाय हैं अभ्यास और अनासक्ति। मन की वृत्ति पर अधिकार करने की अनेक विधियां हैं 

संप्रज्ञात समाधि

सुषुप्त समाधि

पूर्ण समाधि

आदि। मन का जो संबंध मस्तिक और मस्तिष्क का जो संबंध शरीर से है, उसे भी माना और जाना गया है।

हठयोग शरीर पर अधिकार करना सिखाता है और जब तक यह नहीं हो जाता वह निरंतर अभ्यास करता है। मन के सूक्ष्म क्षेत्र में राजयोग या भार अपने ऊपर लेता हैराजयोग की समस्या यह है कि भाड़ अपने कैसे वह व्यक्ति के पर सीमित मन को उठाकर सर्वव्यापी के अनंत मन में मिला वे। परी सीमित मन anand बनने की क्षमता है यह पहले ही मान लिया गया, अन्यथा प्रयत्न का कोई अर्थ ना होता।

योग इसे मान कर चलता है कि कोई ऐसा वस्तु नहीं है जिस पर मन हावी ना हो जाए। मन को वश में करके सब कुछ अपने वश में किया जा सकता है।

भारतीय और यूरोपीय विज्ञान में मूल अंतर


चित्र के 3 गुण सत ,रज और तम का वर्णन भारतीय साहित्य दर्शन में बार बार आता है।

फिर मन की क्रियाओं का वर्णन है। यहां तक योग कीी दृष्टि

मनोवैज्ञानिक है यूरोप का मनोविज्ञान यही तक है परंतु भारतीय मनोविज्ञान मन की क्रियाओं की विश्लेषण पर समाप्त नहीं होता।वह उन्हें अनुशासित संयमित और वशीभूत करने की विधि खोजता है। वह अपने वश में करने के 2 उपाय हैं अभ्यास और अनासक्ति।

चित्त वृत्तियों पर अधिकार की भी कई श्रेणियां हैं sum प्रज्ञात समाधि, सुषुप्त समाधि, पूर्ण समाधि।मन का जो संबंध मस्तिक से हैं और मस्तिष्क का संबंध जो शरीर से है उसे भी जाना और माना गया है।

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