भारतीय संस्कृति एक विशाल जलधारा की तरह है इसमें एकाकार होने वाली संस्कृतियों छोटी-छोटी धाराओं का समागम है,जो आवश्यकता उपयोगिता और उपयोगिता को उभारती और अनावश्यक अनुपयोगी और अनुपयुक्त बातों को छोड़ दी हुई चिरकाल से आज तक अविरल और अबाध गति से विशाल जलधारा के रूप में अग्रसर हो रही है।जो भारत की संस्कृति एकता का प्रमाण है कि उभर्ती हुई भारतीय संस्कृति ने न केवल परंपरा का पोषण किया है, वरन वांछित परिवर्तन को भी अपने में समाहित कर लिया है भारतीय संस्कृति समृद्ध है विकासमान है।वर्तमान विश्व की अनिवार्यता को झेलने से उसका सामर्थ्य बड़ा है भविष्य की चुनौतियों का सामना करने में वह सक्षम है सहिष्णुता और सामंजस्य की उसकी विशेषता का ही प्रतिफल है कि हमारी संस्कृति की वरीयता बरकरार है।
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