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महात्मा गांधी का संक्षिप्त परिचय देते हुए चोरी प्रायश्चित के संबंध में गांधी जी के विचार पर प्रकाश डालिए

 महात्मा गांधी का संक्षिप्त परिचय देते हुए चोरी और प्रायश्चित के संबंध में गांधी जी के विचार पर प्रकाश डालिए?


देश की आजादी में राजनीति के क्षेत्र में या सामाजिक उत्थान के क्षेत्र में गांधी जी का बहुत  बड़ा  योगदान रहा है ।गांधीजी उच्च कोटि के शिक्षा शास्त्री थे। उनका दृढ़ विश्वास खाकी शिक्षा ही एक ऐसा माध्यम है जिससे समाज उन्नति कर सकता है स्वतंत्रता संग्राम में   अंग्रेजी शासकों से संघर्ष करते हुए  उन्होंने शिक्षा पर भी विशेष बल दिया  और शिक्षा के विभिन्न पक्षियों पर चिंतन मनन कर कई प्रयोग किए शिक्षा से संबंधित अनेक पुस्तकें लिखी।

 राष्ट्रपिता के नाम से सुशोभित महात्मा गांधी देश की अमूल्य धरोहर में से एक हैं । उनका सम्मान और उनके विचारों का अनुगमन न केवल भारतीय करते हैं अपितु भारत के  बाहर भी बहुत बड़ी संख्या में लोग करते हैं। गांधी जी के कार्यों एवं विचारों को सम्मान की दृष्टि से देखते हैं।
 जन्म और शिक्षा-
मोहनदास करमचंद गांधी का जन्म 2 अक्टूबर 1869 
में गुजरात के पोरबंदर नामक स्थान में हुआ था। गांधीजी बचपन पोरबंदर में बीता एवं उनकी शिक्षा वही के स्कूल में प्रारंभ हुई उनके पिता दीवान थे । कठियावाड़ की रियायत  पिछड़ी हुई थी लोग बहुत ही सहज सीधे-साधे ढंग से रहते थे ।मोहनदास पर भी उसका प्रभाव था साथ ही माता-पिता की धार्मिक उदारता का प्रभाव पड़ना। स्वाभाविक था सन 1887 में उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की ! शिक्षा का माध्यम अंग्रेजी था आगे की पढ़ाई के लिए वे विलायत गए एवं स्वदेश लौटकर वकालत करने लगे।
 गांधी जी सत्य एवं अहिंसा के पुजारी होने के साथ देश प्रेमी थे। सत्य एवं अहिंसा के बल पर ही उन्होंने अंग्रेजी से संघर्ष किया देश की आजादी में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही है। 
 मृत्यु-
 गांधी जी की मृत्यु 30 जनवरी 1948 को गोली लगने से हुई सत्य के प्रयोग गांधीजी की आत्मकथा है चोरी और  प्रायश्चित इस आत्मकथा का महत्वपूर्ण अंश है।
चोरी और प्रेषित के संबंध में गांधी जी के विचार
 
चोरी- गांधीजी के 5 व्रतों में से एक हैं। चोरी ना करना। दूसरों का कोई सामान उनकी अनुमति के बिना लेना चोरी है ।इसके अलावा जो चीज हमें जिस कार्य के लिए मिली है उसका उपयोग अन्य कार्यों में करना अपनी आवश्यकता से अधिक चीजों को लेना भी चोरी है।

 प्रायश्चित- गांधीजी के अनुसार सुरक्षा पूर्वक खुले दिल से एवं फिर कभी भी उस गलती को नहीं करने की प्रतिज्ञा के साथ अपने अपराध अथवा दोष स्वीकार कर लेना वास्तविक प्रायश्चित है अतः मानव को अपराध बोध होना ही उसका प्रायश्चित है।


2 टिप्‍पणियां:

  1. To your prayshit ke sambandh mein Gandhi ji ke vechar

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  2. चोरी और प्रायश्चित के संदर्भ में गांधी जी के विचार

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